अब इस मण्डल में सौम्यस्वभाव परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हैं।
पदार्थान्वयभाषाः - (सोम) हे सौम्यस्वभाव परमात्मन् ! (स्वादिष्ठया) आनन्द के बढ़ानेवाले (मदिष्ठया, धारया) आह्लाद के वर्द्धक स्वभाव से आप हमें (पवस्व) पवित्र करें, जो स्वभाव आप का (इन्द्राय) ऐश्वर्य्य के (पातवे) बढ़ाने के लिये (सुतः) प्रसिद्ध है ॥१॥
भावार्थभाषाः - यों तो परमात्मा के अपहत पाप्मादि अनन्त गुण हैं, पर शान्तस्वभाव परमात्मा के शान्ति के देनेवाले सौम्य स्वभावादि ही हैं। परमात्मा के सौम्य स्वभाव के धारण करने से पुरुष शान्तिसम्पन्न हो जाता है। फिर उसको अपने स्वरूप में एक प्रकार का आनन्द प्रतीत होने लगता है, जिससे एक प्रकार का हर्ष उत्पन्न होता है। मद यहाँ हर्ष का नाम है, किसी मादक द्रव्य का नहीं। कई एक टीकाकारों ने इस मण्डल को मदकारक सोम द्रव्य में लगाया है, वह भूल की है, क्योंकि इस मण्डल में परमात्मा के गुण-कर्म्म-स्वभावों का वर्णन है, किसी द्रव्यविशेष का नहीं ॥१॥